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क्या आप डिलिस्टिंग के बारे जानते हैं

आइये जानते हैं डिलिस्टिंग के कारण और विभिन्न पहलु

इनिशियल पब्लिक ऑफर (आईपीओ – पब्लिक इश्यू) के बाद जिस प्रकार शेयरों की शेयर बाज़ार में लिस्टिंग होती है उसी प्रकार अनेक बार कंपनियां अपने शेयरों की शेयर बाज़ार से डिलिस्टिंग करवाती हैं। इसका सीधा सा अर्थ है BSE या NSE के लिस्ट से हटाना।

डिलिस्टिंग अलग-अलग कारणों से होती है

डिलिस्टिंग कई कारणों से होती है। कोई कंपनी डिलिस्टिंग क़रार का पालन नहीं करती है और डिलिस्टिंग की फ़ीस नहीं भरती है तब एक्सचेंज पहले उसके शेयरों को सस्पेंड कर देता है उसके बाद भी यदि कंपनी निर्धारित समय के अंदर डिलिस्टिंग क़रार में उल्लिखित शर्तों का पालन नहीं करती है तो अंत में एक्सचेंज उसके शेयरों को डिलिस्टि करने की नोटिस दे देते हैं। ऐसा होने पर भी यदि कंपनी कोई उत्तर न दे तो एक्सचेंज उसके शेयरों को अपनी सूची से हटा देती है। इस प्रकार की डिलिस्टिंग एक सज़ा के रूप में या कार्रवाई के रूप में होती है, जिसका भोग उसके शेयर धारकों को भोगना पड़ता है, जिससे वे अपने शेयरों के सौदे बाज़ार में नहीं कर सकते और शेयरों की प्रवाहिता शून्य हो जाती है।

  • शेयर डिलिस्टि हो जाने के बाद उनके सौदे शेयर बाज़ार पर नहीं हो सकते। इस प्रकार डिलिस्टिंग शेयर धारकों एवं निवेशकों के हित में नहीं है।
  • कई बार कंपनियां अपनी स्वेच्छा से डिलिस्टिंग कराती हैं। ऐसा करते समय कंपनियों को सेबी के डिलिस्टिंग दिशा-निर्देशों का पालन करना होता है, जिसके तहत कंपनी को शेयरधारकों के पास से स्वयं ही शेयर ख़रीदने पड़ते हैं। इस प्रकार स्वैच्छिक डिलिस्टिंग के मामले में उसके शेयरधारकों को नुकसान सहन नहीं करना पड़ता है।