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जानीये डॉलर के मुकाबले क्यों कमजोर होता है रुपया?

एक डॉलर खरीदने के लिए 71.58  रुपए खर्च करने पड़ रहे हैं

हम सभी लगभग प्रतिदिन की खबरों में डॉलर के मुकाबले रूपये की गिरावट को पढ़ते हैं|भारत की मुद्रा ‘रुपए’ के मूल्य में गिरावट की निरन्तरता बनी हुई है।आंकड़ों के मुताबिक, जनवरी 2019  से अक्टूबर तक ये गिरावट लगातार बनी हुई है|वर्तमान विनिमय दरों के अनुसार निवेशकों को एक डॉलर खरीदने के लिए 71.58  रुपए खर्च करने पड़ रहे हैं।यह पूर्व की सबसे निचली स्थिति 68.80 रुपए प्रति डॉलर के स्तर से भी नीचे चला गया है।रूपये की गिरती कीमतों को देखकर अक्सर ही हम सभी के मन में ये सवाल उठता है,आखिर क्यों कमजोर होता है रुपया?आइये आज जानते हैं इस पूरी प्रक्रिया के लिए कौन से कारण जिम्मेदार हैं?

आजादी से आज तक जारी है गिरावट:

डॉलर के सापेक्ष रूपये की गिरावट कोई नयी बात नहीं है|रूपये की गिरावट एक निरंतर घटित होने वाली घटना बन चुकी है| ब्रिक्स समूह (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) के देशों भारतीय ‘रुपया’ ही है जिसके मूल्य में सबसे ज्यादा गिरावट आई है|रूपये के मुल्य में आयी गिरावट हर भारतीय की चिंता का सबब है|इतिहास की बात करें तो 1947 में डॉलर और रुपए के बीच में विनिमय दर 1 यूएसडी= 1 आईएनआर थी|अर्थात एक रूपये का मुल्य एक डॉलर के बराबर था| आजादी के बाद भारतीय रुपए का तीन बार अवमूल्यन हुआ है।जिसके फलस्वरूप आज एक अमेरिकी डॉलर खरीदने के लिए 71.58 रुपए खर्च करने पड़ते हैं।इस विनिमय दर का अर्थ है आजादी के 72 सालों में रुपए की कीमत में 71  फीसदी से अधिक की गिरावट आ चुकी है|देश में सरकारें बदलती रही रूपये के अवमूल्यन पर गैरजरूरी टिप्पणियां भी हुई लेकिन रूपये की सेहत में सुधार नजर नहीं आया| हर सरकार के इस मामले पर जवाबदेही लेने से बचती रही है| किंतु आरोप लगाकर कोई भी सरकार अपनी जवाबदेही से बच नही सकती|

अवमूल्यन और सुधार:

सामान्य शब्दों में कहें तो जब किसी देश की मुद्रा के बाहरी मूल्य में कमी होती है तो मुद्रा का आंतरिक मूल्य स्थिर रहता है। ऐसी दशा को मुद्रा का अवमूल्यन कहा जाता है। जहां तक विनिमय दर का सवाल है तो इसका अर्थ दो अलग अलग मुद्राओं की सापेक्ष कीमत है यानी कि ‘एक मुद्रा के सापेक्ष दूसरी मुद्रा का मूल्य।’ इसे रूपये और डॉलर के सापेक्ष समझा जा सकता है| इस मामले में भारत की स्थिति तभी ठीक हो सकती है जब हम आयात और निर्यात में संतुलन बना पायें|अभी हम इंपोर्ट ज़्यादा करते हैं और एक्सपोर्ट बहुत कम| इस तरह की असंतुलन की स्थितियों में भारतीय रिज़र्व बैंक डॉलर खरीदकर बाजार में इसकी पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करता है| रुपये की कीमत पूरी तरह इसकी डिमांड और सप्लाई पर निर्भर करती है| इंपोर्ट और एक्सपोर्ट का भी इस पर असर पड़ता है| हर देश के पास उस विदेशी मुद्रा का भंडार होता है, जिसमें वो लेन-देन करता है| विदेशी मुद्रा भंडार के घटने और बढ़ने से ही उस देश की मुद्रा की चाल तय होती है| अमरीकी डॉलर को वैश्विक करेंसी की मान्यता मिलने का प्रमुख कारण है ज़्यादातर देश इंपोर्ट का बिल डॉलर में ही चुकाते हैं|डॉलर की अधिक मांग के कारण ही आज वो वैश्विक मुद्राओं का सिरमौर हैं|

ये कारण हैं जिम्मेदार:

रूपये की कमजोरी के पीछे बहुत से कारण उत्तरदायी हैं|आज जानते हैं क्या हैं वो कारण|  

कच्चे तेल के दामों में वृद्धि: हम सभी जानते हैं भारत तेल के बड़े आयातक देशों में से एक है| भारत अपनी जरुरत का 80 प्रतिशत तेल  आयात करता है। भारत के आयात बिल में सबसे बड़ा हिस्सा क्रूड आयल  के मूल्यों का होता है। कच्चे तेल की कीमतें भारत की जीडीपी को प्रभावित करती हैं| उदाहरण के लिए,यदि कच्चे तेल की कीमत में 10 डॉलर प्रति बैरल की वृद्धि हो जाती है तो इससे भारत की जीडीपी में 0.2-0.3 प्रतिशत की कमी आ जाती है। स्वाभाविक है कि जैसे-जैसे भारत में कच्चे तेल की मांग बढ़ेगी, सरकार का आयात बिल बढ़ता जाएगा।जिसके लिए भारत को भुगतान डॉलर में अधिक भुगतान करना पड़ेगा, जिससे डॉलर की मांग बढ़ेगी और रुपए का मूल्य कम हो जाएगा|

आयातित उत्पादों पर कर : अमेरिका-चीन के बीच जारी व्यापार युद्ध से पूरा विश्व प्रभावित हुआ है| भारत भी इस प्रभाव से अछूता नहीं है। अमेरिका ने चीन, भारत और यूरोपियन यूनियन समेत कई देशों के आयातित उत्पादों पर कर बढ़ाने का फैसला लिया है| जिसकी प्रतिक्रिया में इन देशों ने भी अमेरिकी उत्पादों पर कर बढ़ा दिया है। इस प्रतिस्पर्धा में उत्पादों की आयातित कीमतें बढ़ना लाजिमी है। भारत द्वारा आयात की जाने वाली वस्तुओं के दाम भी बढ़ चुके हैं जिसके चलते भारत को अधिक डॉलर भुगतान के रूप में खर्च करने पड़ रहे हैं। इस बढ़ती भुगतान दर से डॉलर की मांग बढ़ रही है और रुपए के मूल्यों में तुलनात्मक कमी आ रही है।

व्यापार घाटा: आयात और निर्यात के असंतुलन से भारत का व्यापार घाटा बढ़ता है| जब किसी देश का निर्यात बिल उसके आयात बिल की तुलना में घट जाता है तो इस स्थिति को व्यापार घाटा कहते हैं। जिसका मतलब है भारत को डॉलर या अन्य विदेशी मुद्रा में रूप में निर्यात से जितनी आय प्राप्त हो रही है, उससे ज्यादा आयात की गयी वस्तुओं और सेवाओं पर खर्च करना  पड़ रहा है।इस वजह से डॉलर की मांग जिससे उसकी कीमतें बढ़ जाती हैं|

विदेशी निवेशक: विदेशी संस्थागत निवेशकों ने भारतीय शेयर बाज़ारों में बिकवाली से पूँजी का बहिर्गमन होता है| विदेशी निवेशक या देशी निवेशक अपना रुपया भारत से निकालकर किसी और देश में निवेश कर देते हैं।ये निकासी समान रूप से स्वीकार की जाने वाली मुद्रा ‘डॉलर’ में होती है|जिसके कारण भारत में डॉलर की मांग बढ़ जाती है जिससे इसका मूल्य भी बढ़ जाता है। यही वजह है कि तुलनात्मक रूप से रुपया कमजोर पड़ जाता है।