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रूस-साउदी के डील से बढ़ सकती है भारत में महंगाई

ओपेक देशों के आपसी रजामंदी नहीं होने पर घटेगा क्रूड ऑयल का उत्पादन

ऑस्ट्रिया (Austria) की राजधानी वियना में दुनिया में सबसे ज्यादा क्रूड ऑयल का उत्पादन करने वाले दो देशों रूस और सऊदी अरब की बड़ी बैठक हो रही है| इस बैठक में क्रूड यानी कच्चे तेल के उत्पादन पर बड़ा फैसला होने की संभावना है, जिसका प्रभाव वैश्विक के साथ भारत पर भी होगा| अगर शुक्रवार को ये देश कच्चे तेल के उत्पादन में कटौती पर फैसला ले लेते है तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर  क्रूड की सप्लाई घट जाएगी और कीमतों में बड़ा उछाल आएगा| इससे भारत में पेट्रोल-डीज़ल के दाम भी तेजी से बढ़ सकते है| अंततः यह आम आदमी की जेब पर ही बोझ को बढ़ाएंगे क्योंकि भारत में भी पेट्रोल, डीजल के मूल्य बाज़ार से जुड़े हुए हैं|

आपसी तनाव ने बढाई मूल्य वृद्धि की संभावना

न्यूज़18 की रिपोर्ट के अनुसार शुक्रवार को ओपेक तेल उत्पादक देश इस बात पर विचार करेंगे कि पिछले तीन साल से वह जो कटौती कर रहे हैं उस पर टिके रहें या उसमें कुछ कमी लाएं या दाम में वृद्धि की उम्मीद में इस कटौती को और ज्यादा किया जाए| विदित हो की यह बातचीत तनाव के बीच हो रही है जिसमें सदस्य देश प्रतिस्पर्धी दिशाओं में बढ़ रहे हैं, जिससे भी क्रूड ऑयल के उत्पादन के सीमित होने की संभावनायें बढ़ गई हैं|

आरामको के आईपीओ ने सउदी की असमंजसता

सऊदी की सरकारी तेल कंपनी अरामको के शेयर बाजार में उतारने के साथ सऊदी अरब काफी असमंजस की स्थिति में पड़ गया है| वह इस असमंजस में है कि तेल उत्पादन की कितनी मात्रा से दाम बेहतर स्तर पर प्राप्त होंगे| इसके साथ ही अब सऊदी पर पर अरामको के शेयरधारकों का भी अतिरिक्त दबाव होगा| हालांकि, ओपेक के कुछ सदस्य देश ऐसे भी हैं जो कि समझौते को नजरअंदाज कर उन्हें आवंटित मात्रा से अधिक तेल का उत्पादन कर रहे हैं|

क्या है ओपेक और क्या करता है यह

कच्चा तेल को एक्सपोर्ट करने वाले देशों के संगठन का नाम ओपेक है| इसकी स्थापना 10-14 सितम्बर 1960 को ईरान, इराक, कुवैत, सऊदी अरब और वेनेज़ुएला द्वारा “बगदाद सम्मेलन” में की गयी थी| यह साठ के दशक में तेल उत्पादन, कीमतों और नीतियों के समन्वय के लिए बना एक अंतर-सरकारी संगठन है| आज दुनियाभर के 14 देश इसमें शामिल है| क़तर ने हाल ही में ओपेक की सदस्यता का परित्याग किया है| ओपेक की स्थापना के पहले 5 वर्षों तक इसका मुख्यलय का मुख्यालय जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में था लेकिन इसे 1 सितंबर, 1965 को ऑस्ट्रिया के वियना में स्थानांतरित कर दिया गया था| सितंबर 2019 में विश्व के कुल कच्चे तेल उत्पादन में ओपेक सदस्य देशों का हिस्सा 33.1% था| ओपेक के कुल उत्पादन 32,761 मिलियन बैरल प्रतिदिन में सऊदी अरब लगभग 32% योगदान देता है|

क्रूड ऑयल के महंगे होने से आम लोगों और अर्थव्यवस्था पर कैसा पड़ेगा असर   

(1) आम आदमी की जेब पर भी बढ़ेगा बोझ- बाज़ार एक्सपर्ट बताते हैं कि विदेशी बाजार में कच्चा तेल महंगा होने से भारत में पेट्रोल-डीज़ल के दाम बढ़ सकते है| भारत, सऊदी अरब का दूसरा बड़ा ग्राहक है| ऐसे में इंटरनेशनल मार्केट में कच्चे तेल की कीमतों में तेजी का असर भारत पर भी पड़ेगा|

(2) महंगे क्रूड से देश की अर्थव्यवस्था पर होगा असर- ग्लोबल फाइनेंशियल सर्विसेज कंपनी नोमुरा के अनुमान के मुताबिक, कच्चे तेल की कीमतों में 10 डॉलर प्रति बैरल की बढ़ोतरी से भारत के राजकोषीय घाटे और करंट अकाउंट बैलेंस पर असर होता है| मतलब साफ है कि महंगे क्रूड से जीडीपी पर 0.10 से 0.40 फीसदी तक का बोझ बढ़ जाता है| सरकार के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने कहा था कि तेल की कीमतों में $10 प्रति बैरल की वृद्धि जीडीपी ग्रोथ को 0.2 से 0.3 प्रतिशत नीचे ला सकती है| वर्तमान में करंट अकाउंट डेफिसिट 9 से 10 अरब डॉलर तक बढ़ सकता है|

(3) महंगाई का डर- अंतरराष्ट्रीय बाजारों में क्रूड महंगा होने से इंडियन बास्केट में भी क्रूड महंगा हो जाता है| इससे तेल कंपनियों (HPCL, BPCL, IOC) पर दबाव बढ़ता है कि वो भी महंगा कच्चा तेल खरीदने पर पेट्रोल-डीज़ल के दाम बढ़ाएं| ऐसे में पेट्रोल और डीजल महंगा होने से ट्रांसपोर्टेशन का खर्च बढ़ जाता है, जिससे महंगाई बढ़ने का डर होता है|

 (3) बढ़ेगा देश का करंट अकाउंट डेफिसिट- भारत अपनी आवश्यकता का करीब 82% क्रूड खरीदता है| ऐसे में क्रूड की कीमतें बढ़ने से देश का करंट अकाउंट डेफिसिट (CAD) बढ़ सकता है| क्रूड की कीमतें लगातार बढ़ने से भारत का इंपोर्ट बिल उसी रेश्‍यो में महंगा होगा, जिससे करंट अकाउंट डेफिसिट की स्थिति बिगड़ेगी| देश की अर्थव्यवस्था पर उल्टा असर पड़ने से आम आदमी भी प्रभावित होता है|

(4) अमेरिकी डॉलर के मुकाबले आएगी रुपये में कमजोरी- एक्सपर्ट्स का कहना है कि क्रूड अगर महंगा होता है तो करंट अकाउंट डेफिसिट बढ़ने के साथ ही रुपये में कमजोरी आ सकती सकती है| फिलहाल अभी डॉलर के मुकाबले रुपया स्टेबल है और इस पर ज्यादा असर नहीं दिख रहा है|

कल शुक्रवार को होने वाले रूस-सऊदी अरब के बैठक में अगर ये दोनों देश क्रूड ऑयल को घटाने का फैसला करते हैं तो अन्य देशों के साथ भारत पर भी गहरा प्रभाव पड़ेगा| हाल में ऐसे भी बहुत से रेटिंग एजेंसीयों ने भारत के जीडीपी अनुमान को घटाकर कम कर दिया है और इसके बाद भी अगर कच्चे तेल की कीमतें बढती है तो यह ग्रोथ रेट पर और नकारात्मक प्रभाव डालेगा ऐसे संभावना है|