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सेबी के इस कदम से सस्ता होगा म्युचुअल फंड में निवेश

घटेगी निवेश की एक-चौथाई लागत

म्यूचुअल फंड के निवेशकों के हित को ध्यान में रखते हुए बाजार नियामक सेबी(SEBI) म्यूचुअल फंड में निवेश की फीस में बड़े बदलाव करने जा रहा है। सेबी के इस कदम से निवेश की लागत करीब एक-चौथाई  तक घट सकती है। म्यूचुअल फंड कंपनियां निवेशकों से फंड के प्रबंधन के एवज में अग्रिम शुल्क वसूलती हैं।इस पहल से निवेशकों को गलती फंड बेचने की प्रवृत्ति में निश्चित रूप से रोक लगेगी।

बता दे भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने फंड कंपनियों द्वारा निवेशकों से लिए जाने वाले शुल्क में कटौती कर दी है।जिसके अनुसार किसी भी फंड में निवेशकों को पूंजी लगाने के लिए आकर्षित करने के एवज में फंड वितरकों को जो अग्रिम शुल्क मिलता था, नियामक ने उसे पूरी तरह खत्म कर दिया है। इसके बदले फंड वितरकों को अब सिर्फ ट्रेल कमीशन मिलेगा। जब तक किसी फंड में रकम लगी रहती है, तब तक वितरकों को कमीशन के तौर पर मिलने वाली एक या दो फीसद रकम को ट्रेल कमीशन कहा जाता है।

विदित हो कि अग्रिम शुल्क का मतलब यह है कि जब भी कोई निवेशक निवेश करता है, तो इस निवेश में मदद मुहैया कराने वाले वितरक को निवेश की कुल रकम का शायद एक या दो फीसद हिस्सा कमीशन के रूप में मिलता है। ऐसे में वितरकों की दिलचस्पी सिर्फ इस बात में बनी रहती है कि किसी तरह लेनदेन पूरा हो जाए। देश में 42 म्यूचुअल फंड कंपनियां हैं जिनका एसेट अंडर मैनेजमेंट (एएमयू) अगस्त 2019 में करीब 4 फीसदी बढ़कर 25.47 लाख करोड़ रुपये हो गया है।जो जुलाई 2019 में यह 24.53 लाख करोड़ रुपये थी। चालू वित्तीय वर्ष के पहले 5 महीनों में म्यूचुअल फंड की एएमयू करीब 1.68 लाख करोड़ रुपये बढ़ी है। जानकारों के अनुसार देश में शेयर बाजार में गिरावट के दिनों  में भी निवेशक अपनी एसआईपी चला रहे हैं। इससे पता चलता है कि देश के निवेशकों में जागरूगता आई है।ऐसे मे सेबी की ये पहल निश्चित रूप से उप्भोक्ताओ के हित सुनिश्चित करने की दिशा मे एक मील का पत्थर साबित होगी।

सेबी के नए नियमों के बाद फंड कंपनियों का फोकस निवेशकों की रकम ऐसी चुनिंदा योजनाओं में लगाने में रहेगा, जिसमें निवेशक लंबे समय तक टिक सकें। निवेशक टिके रहेंगे, तो फंड कंपनियों और वितरकों को आमदनी भी होती रहेगी। सेबी ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि फंड कंपनियां अपने वितरकों को सभी कमीशन और खर्च का भुगतान सिर्फ और सिर्फ फंड योजना के जरिये ही करेंगी। अब उनका भुगतान असेट मैनेजमेंट कंपनियों (एएमसी), सहयोगियों, प्रायोजकों, ट्रस्टी या किसी भी अन्य माध्यम से नहीं किया जाएगा।