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SEBI कर रही है कमोडिटी ट्रेडिंग की समीक्षा, मार्जिन बढ़ने के हैं आसार!

हाल ही में हुए कुछ घटनाक्रमों ने बाज़ार नियामक सेबी को मार्जिन की नीतियों के बारे में पुनर्विचार करने के लिए मजबूर किया है

देश के सबसे बड़े डेरेवेटिव एक्सचेंज NCDEX (National Commodity & Derivatives Exchange Limited) के कुछ ट्रेडिंग मेंबर्स और उनके क्लाइंट्स की तरफ से कैस्टरसीड के सौदों में हुए डिफॉल्ट के बाद बाज़ार नियामक सेबी (भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड) ने नीतियों के समीक्षा की कवायद शुरू कर दी है| ज्ञात हो कि शेयर एवं कमोडिटी बाजार नियामक सेबी कमोडिटी डेरेवेटिव सेगमेंट के मार्जिन फ्रेमवर्क की समीक्षा कर रहा है, इसमें कमोडिटी ट्रेडिंग के मार्जिन में बढ़ोतरी के बारे में निर्णय हो सकता है|

कैस्टरसीड संकट ने मार्जिन फ्रेम वर्क के रिव्यू को बनाया जरुरी 

कुछ सूत्रों ने बताया कि डेरेवेटिव एक्सचेंज पर कैस्टरसीड संकट के बाद खासतौर से कम उपलब्धता और कम ट्रेडिंग वॉल्यूम वाली कमोडिटीज (नैरो कमोडिटीज) के लिए मार्जिन फ्रेम वर्क का रिव्यू करना और मजबूत बनाना जरूरी हो गया है|

उम्मीद है कि सेबी की कमोडिटी डेरेवेटिव्स मार्केट रेगुलेशन डिपार्टमेंट अगले कुछ महीनों में यह काम पूरा कर लेगा| इससे आने वाले समय में ट्रेडिंग मार्जिन में इजाफा होगा|

ज्ञात हो कि कैस्टर, जीरा, ग्वार, मेंथा, धनिया, काली मिर्च बगैरह नैरो कमोडिटीज में आती हैं जबकि सोयाबीन ऑयल, गेहूं, चीनी, सोना और चांदी बगैरह ब्रॉड कमोडिटीज कहलाती हैं|

मार्जिन रिव्यू में कम ट्रेडिंग वॉल्यूम वाली वस्तुओं पर होगा फोकस 

इकोनोमिक टाइम्स से बात करते हुए एक अन्य सूत्र ने इसी बारे में कहा कि मार्जिन में रिव्यू में फोकस कम ट्रेडिंग वाली वॉल्यूम वाली कमोडिटी पर होगा, क्योंकि गेहूं, सोयाबीन, सोना, चांदी बगैरह जैसे ब्रॉड कमोडिटी के मुकाबले इनके प्राइस में जोड़-तोड़ किये जाने की संभावना ज्यादा होती है| आमतौर पर एक्सचेंज और रेगुलेटर किसी कमोडिटी में बहुत ज्यादा सटोरियां गतिविधियों पर रोकथाम के लिए मार्जिन और पोजीशन लिमिट का इस्तेमाल करते हैं|

विदित है कि ट्रेड करने के लिए पार्टिसिपेंट्स को अपने ब्रोकर्स के पास मार्जिन जमा कराना होता है जो आमतौर पर कमोडिटी की कॉन्ट्रैक्ट वैल्यू के एक हिस्से के बराबार होता है| इसको इस ताज़ा उधारण से समझते हैं, इस शुक्रवार को कैस्टर की ट्रेडिंग पर 26.81 फीसदी का मार्जिन और उसके ऊपर 5-5 फीसदी का अतिरिक्त लॉन्ग (बॉय) और शार्ट (सेल) मार्जिन था| इस हिसाब से 5 टन कैस्टर की लगभग 2 लाख 5 हजार रुपए की कॉन्ट्रैक्ट वैल्यू पर लॉन्ग या शार्ट किसी भी पोजीशन पर 65,210 रुपए का मार्जिन देना था| इस हिसाब से ट्रेडर को तब कॉन्ट्रैक्ट के लिए मार्जिन के तीन गुना का एक्सपोजर मिल रहा था| पिछले साल सितंबर और अक्टूबर में कैस्टर संकट से पहले मार्जिन सिंगल डिजिट में था और ट्रेडिंग पर 10 गुना एक्सपोजर (सौदा) मिलता था|

विशेषज्ञ इस बारे में बात करते हुए कहते हैं कि मार्जिन के मुकाबले ज्यादा एक्सपोजर दिये जाने पर जोखिम बढ़ता है क्योंकि उछाल या गिरावट आने पर दोनों सूरत में भारी नुकसान का आसार होता है|