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सुप्रीम कोर्ट ने टेलिकॉम कंपनियों की पुनर्विचार याचिका को किया खारिज़, 23 जनवरी तक करना होगा भुगतान

AGR के मुद्दे पर टेलीकॉम कंपनियों की पुनर्विचार याचिका कोर्ट ने खारिज कर दिया है|

टेलिकॉम कंपनियों का आखिरी दांव भी फेल हो गया| AGR के मुद्दे पर टेलीकॉम कंपनियों की पुनर्विचार याचिका कोर्ट ने खारिज कर दिया है| कंपनियों को अब केंद्र सरकार को 92 हजार करोड़ रुपए चुकाने होंगे| सुप्रीम कोर्ट ने इस बार इसके लिए समयसीमा भी तय करदी है| कोर्ट के फैसले के मुताबिक 23 जनवरी 2020 तक टेलीकॉम कंपनियों को अपना-अपना बकाया चुकाना है|

ज्ञात हो कि एडजेस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (AGR) के मुद्दे पर टेलीकॉम कंपनियों ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी| भारती एयरटेल, वोडा-आइडिया और टाटा टेली सर्विसेज ने यह संयुक्त याचिका दाखिल की थी| याचिका में जुर्माना, ब्याज और जुर्माने पर लगाए गए ब्याज पर छूट देने का अनुरोध किया गया था| साथ ही टेलीकॉम कंपनियों ने लगाए गए जुर्माने की राशि को लेकर भी कोर्ट में चुनौती दी थी| याचिका में अदालत से AGR में गैर दूरसंचार आय को शामिल करने के फैसले पर भी फिर से विचार करने का अनुरोध किया था|

पूर्व निर्धारित डेट को ही करना होगा भुगतान  

इससे पूर्व 24 अक्तूबर 2019 को टेलीकॉम कंपनियों को सुप्रीम कोर्ट से बहुत बड़ा झटका लगा था| कोर्ट ने टेलीकॉम कंपनियों को 92 हजार करोड़ से ज्यादा रुपए का बकाया और लाइसेंस फीस केंद्र सरकार को देने को कहा था| दूरसंचार विभाग (DoT) की याचिका मंजूर करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह बकाया तीन महीने में दिया जाएगा| सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि AGR यानी समायोजित सकल राजस्व में लाइसेंस फीस और स्पेक्ट्रम उपयोग के अलावा अन्य आय भी शामिल है| इसमें कैपिटल एसेस्ट की बिक्री पर लाभ और बीमा क्लेम AGR का हिस्सा नहीं होंगे| टेलीकॉम कंपनियों ने इसके लिए 6 महीने का समय मांगा था|

कोर्ट ने खारिज़ किया टेलिकॉम कंपनियों का दावा 

NDTV की रिपोर्ट के मुताबिक़ सरकार द्वारा टेलीकॉम कंपनियों द्वारा देय लाइसेंस फीस और स्पेक्ट्रम उपयोग शुल्क की गणना AGR यानी समायोजित सकल राजस्व के प्रतिशत के रूप में की जाती है| दूरसंचार विभाग ने भारती, वोडा-आइडिया, आर कॉम आदि कंपनियों पर कुल लगभग 1.33 लाख करोड़ रुपये के बकाया का दावा किया है| इसमें लाइसेंस शुल्क के रूप में 92000 करोड़, स्पेक्ट्रम उपयोग शुल्क के रूप में 41000 करोड़ रूपए शामिल हैं|

दूरसंचार विभाग ने याचिका के खिलाफ अपने जवाब में कोर्ट में कहा है कि टर्मिनेशन शुल्क के अलावा टेलीकॉम कंपनियों को मिलने वाले सभी राजस्व, रोमिंग शुल्क AGR का हिस्सा ही माना जाएगा| जबकि टेलीकॉम कंपनियों की दलील है कि गैर-दूरसंचार राजस्व जैसे किराया, इंटरनेट आय, लाभांश आय आदि को AGR से बाहर रखा जाना चाहिए|

बताते चलें कि साल 2006 में TD SAT ने AGR के मुद्दे पर टेलीकॉम कंपनियों के पक्ष में फैसला दिया था| इसके बाद DoT ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी| साल 2008 में कोर्ट ने TD SAT के फैसले पर अंतरिम रोक लगा दी थी और टेलीकॉम कंपनियों को नोटिस जारी किया था|