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बदसलूकी नही कर सकते बैंक

अपने कर्ज की वसूली के लिए कर्ज देने वालों (बैंक, वित्तीय संस्थान आदि) को उचित प्रक्रिया अपनाना जरूरी है। सिक्योर्ड लोन के मामले में उन्हें गिरवी रखे गए एसेट को कानूनन जब्त करने का हक है। किंतु, नोटिस दिए बगैर बैंक ऐसा नहीं कर सकते हैं. सिक्योरिटाइजेशन एंड रीकंस्ट्रक्शन ऑफ फाइनेंशियल एसेट्स एंड एनफोर्समेंट ऑफ सिक्योरिटी इंटरेस्ट (सरफेसी) एक्ट कर्जदारों को गिरवी एसेट को जब्‍त करने का अधिकार देता है।

लेनदार के खाते को तब नॉन-परफॉर्मिंग एसेट (एनपीए) में डालने से पह्ले नोटिस देना जरूरी जाता है।लेनदार जब 90 दिनों तक वह बैंक को किस्त का भुगतान नहीं करता है तो इस तरह के मामले में कर्ज देने वाले को डिफॉल्टर को 60 दिन का नोटिस जारी जारी करना पड़ता है। बैंकिंग कंसल्टेंट और पूर्व क्रेडिट काउंसलर वी.एन. कुलकर्णी ने एकोनोमिक टाइम्स से बातचीत में बताया कि अगर नोटिस पीरियड में बॉरोअर भुगतान नहीं कर पाता है तो बैंक एसेट की बिक्री के लिए आगे बढ़ सकते हैं। हालांकि, एसेट की बिक्री के लिए बैंक को 30 दिन और का पब्लिक नोटिस जारी करना पड़ता है।इसमें बिक्री के ब्योरे की जानकारी देनी पड़ती है।

एसेट की बिक्री से पहले बैंक/वित्तीय संस्थान को एसेट का उचित मूल्य बताते हुए नोटिस जारी करना पड़ता है।इसमें रिजर्व प्राइस, तारीख और नीलामी के समय का भी जिक्र करने की जरूरत होती है।उचित मूल्य का पता बैंक के वैल्यूअर लगाते हैं|अगर बॉरोअर को लगता है कि एसेट का दाम कम रखा गया है तो वह नीलामी को चुनौती दे सकता है। इस मामले में बॉरोअर को नया खरीदार खोजने का हक है। वह बैंक से नए खरीदार का परिचय करा सकता है।

बकाया पैसे को पाने के अधिकार से अगर एसेट को कब्जे में ले भी लिया जाता है तो भी नीलामी की प्रक्रिया पर नजर रखनी चाहिए। लोन की वसूली के बाद बची अतिरिक्त रकम को पाने का लेनदार को हक है। बैंक को इसे लौटाना पड़ेगा। धमकाने या जोर जबर्दस्ती की इजाजत नहीं कर्जदाता अपना लोन वसूलने के लिए रिकवरी एजेंटों की सेवाएं ले सकते हैं। लेकिन, ये अपनी हद पार नहीं कर नहीं कर सकते हैं। इस तरह के थर्ड पार्टी एजेंट ग्राहक से मिल सकते हैं। पर, उन्हें ग्राहकों को धमकाने या जोर जबर्दस्ती करने का अधिकार नहीं है। वे ग्राहक के घर सुबह 7 बजे से शाम 7 बजे के बीच जा सकते हैं। हालांकि, वे ग्राहकों से बदसलूकी नहीं कर सकते हैं। अगर इस तरह का दुर्व्यवहार होता है तो ग्राहक इसकी शिकायत बैंक में कर सकते हैं। बैंक से सुनवाई न होने पर बैंकिंग ओंबड्समैन का दरवाजा खटखटाया जा सकता है।