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मुद्रा स्फीति को कैसे काबू किया जाता है

मुद्रा स्फीति को अँग्रेजी में इन्फ्लेशन और भारत में आम बोलचाल में महंगाई कहते है।

किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में मुद्रा स्फीति का महत्तव देश में बेरोजगारी की समस्या से भी बड़ी है, क्योंकि मुद्रा स्फीति का असर देश के हर तबके के लोगो पर होता है फिर चाहे वो नौकरीपेशा वर्ग हो या काम न करने वाला वर्ग हो।

मुद्रा स्फीति और इसे नियंत्रण में रखने के उपाय

किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में मुद्रा स्फीति के अधिक होने का मतलब है आवश्यक चीज़ों के दामों में बढ़ोतरी होना या आवश्यक चीज़ों के दामों का बढ़ जाना। मुद्रा स्फीति में महंगाई तेज़ी से बढ़ती है। महंगाई पर काबू पाने के लिए सरकार और रिज़र्व बैंक समय-समय पर कुछ ऐसे उपाय करते हैं जिससे मुद्रा स्फीति की दर को निम्न स्तर पर लाया जा सके।

मुद्रा स्फीति को नियंत्रित करने के ये दो तरीके

  1. मौद्रिक नीति
  2. राजकोषीय नीति

मौद्रिक नीति

मुद्रा स्फीति को नियंत्रित करने की ये सबसे प्रचलित नीति है। इस नीति के जरिए मुद्रा स्फीति पर काबू पाने के लिए ये तीन उपाय किए जाते है – बैंक दर नीति, नकद आरक्षित अनुपात और खुला बाजार कार्रवाई।

राजकोषीय नीति

वहीं मुद्रा स्फीति पर नियंत्रण के राजकोषीय नीतियों में शामिल है- कराधान, सरकारी खर्चा, सार्वजनिक उधार आदि पर रोक लगा देना। इसके अलावा सरकार द्वारा आवश्यक वस्तुओं जैसे दालें, अनाज और तेल आदि के निर्यात पर प्रतिबंध लगा देना, कालाबाज़ारी रोकना भी राजकोषीय नीतियों का हिस्सा हैं।

मौद्रिक नीति में सबसे महत्त्वपूर्ण है बैंक दर नीति। यदि आरबीआई चाहता है कि बाज़ार में पैसे की आपूर्ति और तरलता बढ़े तो वह बैंक रेट को कम करेगा, वहीं यदि वह चाहता है कि बाज़ार में पैसे की आपूर्ति और तरलता कम हो तो वह बैंक रेट को बढ़ाएगा। मुद्रा स्फीति बढ़ने के दौरान केन्द्रीय बैंक सामान्यतः रेपो रेट बढ़ाएगा और मुद्रा स्फीति के कम होने के दौरान कम कर देगा।

बैंकों को अपने काम-काज़ के लिये अक्सर बड़ी रकम की ज़रूरत होती है। बैंक इसके लिए रिजर्व बैंक से अल्पकाल के लिए कर्ज़ मांगते हैं और इस कर्ज़ पर रिज़र्व बैंक को उन्हें जिस दर से ब्याज देना पड़ता है, उसे ही रेपो रेट कहते हैं।

रेपो रेट कम होने से बैंकों के लिए रिज़र्व बैंक से कर्ज़ लेना सस्ता हो जाता है और तभी बैंक ब्याज दरों में भी कटौती करते हैं, ताकि ज़्यादा से ज़्यादा रकम कर्ज़ के तौर पर दी जा सके। मुद्रा स्फीति बढ़ने का एक मतलब यह भी है कि वस्तुओं एवं सेवाओं की कीमतों में वृद्धि के कारण, बढ़ी हुई क्रय शक्ति के बावजूद लोग पहले की तुलना में वर्तमान में कम वस्तुओं एवं सेवाओं का उपभोग कर पा रहें हैं।

ऐसी स्थिति में आरबीआई का कार्य यह है कि वह बढ़ती हुई मुद्रा स्फीति पर नियंत्रण रखने के लिए बाज़ार से पैसे को अपनी तरफ खींच ले। अतः आरबीआई रेपो रेट में बढ़ोतरी कर देता है, ताकि बैंकों के लिये कर्ज़ लेना महँगा हो जाए और वे अपने बैंक दरों को बढ़ा दे जिससे कि लोग कर्ज़ न ले सकें।