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रेलवे वाणिज्यिक ही नहीं सामाजिक सेवायें भी देती है: पीयूष गोयल

कर्मचारियों के वेतन और पेंशन पर 22 हजार करोड़ रुपये का अतिरिक्त खर्च

रेलवे सिर्फ वाणिज्यिक ही नहीं सामाजिक सेवायें भी देती है। दूरदराज के  इलाकों, पर्वतीय इलाकों तथा अन्य दुर्गम इलाकों में परिचालन से कभी मुनाफा नहीं होता लेकिन इसका सामाजिक पहलू है।इन सेवाओं की अपनी सामाजिक  लागत है|रेलवे साफ-सफाई, उपनगरीय ट्रेन चालने और गेज बदलाव पर भी काफी खर्च कर रहा है| इन खर्चों से रेलवे पर असर पड़ता है|अब इस पर विचार करने का समय आ गया है कि हम इसे कब तक जारी रख सकते हैं| ये बातें रेल मंत्री पीयूष गोयल ने बुधवार को प्रश्नकाल के दौरान एक पूरक प्रश्न के उत्तर में कही।

 कैग की रिपोर्ट का दिया जवाब:

हाल ही में संसद में पेश की गयी नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट के अनुसार,भारतीय रेलवे का परिचालन मुनाफा दस सालों के न्यूनतम स्तर पर जा पहुंचा है| पीयूष गोयल के इस बयान को इस विषय पर उनकी टिप्पणी भी माना जा सकता है| कैग ने अपनी रिपोर्ट में भारतीय रेल का परिचालन अनुपात वित्त वर्ष 2017-18 में 98.44 प्रतिशत रहने का मुख्य कारण इसके संचालन खर्च बढ़ने को बताया था|

ये गिनाये कारण:

कांग्रेस के गौरव गोगोई द्वारा नियंत्रण एवं महालेखापरीक्षक की रिपोर्ट का उल्लेख करते हुये रेलवे के गिरते परिचालन अनुपात के बारे में पूछे जाने पर गोयल ने कहा कि ,सातवां वेतन आयोग लागू होने के बाद से रेलवे कर्मचारियों के वेतन और पेंशन पर 22 हजार करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च हो रहा है, जिसके वजह से वित्तीय असर पड़ रहा है|सामाजिक दायित्वों के लिए कुछ ऐसे इलाकों नई लाइनों के निर्माण कर ट्रेन चलाई जा रही है जिससे नुकसान का सामना करना पड़ रहा है और इसमें फंड का बड़ा हिस्सा खर्च भी हो रहा है|रेल मंत्री ने लोकसभा में कहा कि रेलवे के व्यय में सिर्फ वाणिज्यिक लागत ही नहीं ‘‘सामाजिक लागत’’ भी है और रेलवे सिर्फ वाणिज्यिक ही नहीं सामाजिक सेवायें भी देती है। दूरदराज के  इलाकों, पर्वतीय इलाकों तथा अन्य दुर्गम इलाकों में परिचालन से कभी मुनाफा नहीं होता लेकिन इसका सामाजिक पहलू है। समय आ गया है कि हम सामाजिक लागत पर अलग से विचार करें और हमारा परिचालन अनुपात शुद्ध वाणिज्यिक पहलुओं को दर्शाये। हमें यह भी देखना होगा कि हम कब तक सामाजिक कारणों पर खर्च करना जारी रख सकते हैं।