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टैक्स फ्री बॉन्ड्स बड़े निवेशकों की पहली पसंद

टैक्स-फ्री बॉन्ड सचमुच टैक्स फ्री इन्स्ट्रूमेंट होते हैं।

आजकल सरकारी कंपनियों के टैक्स फ्री बॉन्ड बड़े निवेशको के बीच खास पसंद की जा रही है जो बड़े निवेशक टैक्स बचत के फायदे के साथ लंबे समय के लिए पैसा लगाना चाहते हैं उनके लिए ये ख़ास है डिविडेंड को बजट में निवेशकों के हाथों टैक्सेबल बनाए जाने से इनकी टैक्स की देनदारी बढ़ी है और टैक्स की देनदारी घटाने वाले निवेश विकल्पों में कमी आई है।

क्या है टैक्स-फ्री बॉन्ड 

नवभारत टाइम्स के अनुसार सिनर्जी कैपिटल के मैनेजिंग डायरेक्टर विक्रम दलाल का कहना है, ‘सिर्फ टैक्स-फ्री बॉन्ड ही सचमुच टैक्स फ्री इन्स्ट्रूमेंट होते हैं और ये मैच्योरिटी तक टैक्स फ्री रहते हैं, क्योंकि इन्हें संसद में मंजूरी दी गई है। इन बॉन्ड्स में निवेशकों की दिलचस्पी खासतौर पर बजट के बाद बनी है। बजट में प्रेफरेंस शेयरों से मिलने वाले डिविडेंड पर टैक्सपेयर्स के इनकम स्लैब के मुताबिक टैक्स लगेगा।’

टैक्स-फ्री बॉन्ड का आकर्षण 

नवभारत टाइम्स के अनुसार वेल्थ मैनेजर्स का कहना है कि वे निवेशक टैक्स फ्री बॉन्ड खरीद रहे हैं जिन्हें आमतौर पर 30% से ज्यादा रेट से टैक्स देना होता है क्योंकि टैक्स फ्री बॉन्ड्स का पोस्ट टैक्स रिटर्न फिक्स्ड डिपॉजिट से कहीं ज्यादा है। इंटरेस्टट इनकम टैक्स फ्री होने के  कारण और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया जैसे टॉप लेंडर्स के फिक्स्ड डिपॉजिट से ज्यादा ब्याज मिलने के कारण भी इसने निवशको को खासा लुभाया है।

इसकी लोकप्रियता में REC, Hudco, NHAI, IIFCL और PFC के टैक्स फ्री बॉन्ड्स ने ज़्यादा साथ निभाया  है। इसमें बैंक डिपॉजिट से 200-300 बेसिस पॉइंट ज्यादा कमाने की क्षमता है, कोई पुट या कॉल ऑप्शन नहीं है साथ ही AAA रेटिंग होना इस बांड्स की ख़ासियत है। इन पर 5.55-5.75% की टैक्स फ्री यील्ड बन रही है जो प्री टैक्स बेसिस पर नैशनलाइज्ड बैंकों के फिक्स्ड डिपॉजिट के मुकाबले 220-378 पॉइंट ज्यादा है।

टैक्स-फ्री बॉन्ड की उपलब्धता 

विदित हो कि सरकार ने 2016 के बाद से ऐसे बॉन्ड्स जारी नहीं किए हैं। ये बॉन्ड्स खरीदारी के लिए सेकंडरी मार्केट में उपलब्ध हैं और डेट डीलर्स भी 10 लाख रुपये के लॉट्स में ऐसे बॉन्ड बेच रहे हैं।

इसमें ख़ास बात ये है कि जिन टैक्स फ्री बॉन्ड के मैच्योर होने में 4 से 14 साल बचे हैं, उन्हें इन्वेस्टर्स लंबे समय तक रखने के मकसद से खरीद सकते हैं। निवेशक रीइन्वेस्टमेंट रिस्क या टैक्स चेंज की चिंता किए बिना इतने समय के लिए इनमें रकम लगा सकते हैं।