Arthgyani
होम > न्यूज > भारत की अर्थव्‍यवस्‍था पर क्‍या पड़ेगा असर बचत दर में आई कमी

भारत की अर्थव्‍यवस्‍था पर क्‍या पड़ेगा असर बचत दर में आई कमी

निवेश के लिए फंडिंग की जरूरत होती है।

आर्थिक सुस्‍ती ने बचत पर भी असर डाला है। भारत की बचत दर पिछले 15 सालों के निचले स्‍तर पर पहुंच गई है। परिवारों की बचत में भी काफी कमी आई है। इससे भारत की अर्थ व्यस्था को काफी असर हुआ है। इससे पहले ही भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था कम निवेश और ज्‍यादा उधारी की समस्‍या से जूझ रही है।

घूमने-फिरने पर ज्‍यादा खर्च ज्यादा खर्च हुए हैं जिनके चलते परिवारों की बचत में भी कमी देखने को मिली है। देश की कुल बचत में हाउसहोल्‍ड सेविंग्‍स की हिस्‍सेदारी करीब 60 प्रतिशत है। फिर भी भारत ब्राजील जैसे उभरते बाजारों की तुलना में अब भी ज्‍यादा अच्छी पोजीशन पर है।

एचएसबीसी में चीफ इंडिया इकनॉमिस्‍ट प्रांजुल भंडारी ने कहा, ”अगर किसी देश को टिकाऊ ग्रोथ चाहिए तो उसे निवेश की दर बढ़ानी होगी। लेकिन, निवेश के लिए फंडिंग की जरूरत होती है।” उन्‍होंने कहा, ”अगर परिवार की बचत में गिरावट आती है तो सरकार को बाहरी स्रोतों से फंड जुटाना होगा।”

बचत दर का घटना  देश के लिए अच्‍छा संकेत नहीं

वित्‍त वर्ष 2018-19 में देश की ग्रॉस सेविंग जीडीपी का 30.1 फीसदी रही। वित्‍त वर्ष 2011-12 में यह 34.6 फीसदी थी। वहीं, 2007-08 में यह 36 फीसदी थी। केंद्रीय सांख्‍य‍िकी संगठन के आंकड़ों से इसका पता चलता है। इसके पहले 2003-2004 में सबसे कम बचत दर 29 फीसदी रही थी।

बचत दर का घटना  देश के लिए अच्‍छा संकेत नहीं है। बचत दर का घटना इसी तरह चलता रहा तो भारतीय कंपनियों को विदेशी बाजारों से ज्‍यादा कर्ज उठाना पड़ेगा। यह भारत की आर्थिक स्थिति और ज्यादा कमजोर करेगा। इससे देश पर विदेशी कर्ज ज्यादा हो जाएगा।

अन्‍य देशों के बीच क्या है भारत की स्थिति

भंडारी ने कहा कि घटती बचत के दौर में निवेश को बढ़ाने के लिए विदेश से उधारी बढ़ानी होगी। इससे चालू खाते का घाटा बढ़ेगा। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के आंकड़ों से पता चलता है कि देश की बाहरी उधारी पिछले वित्‍त वर्ष के दौरान 543 अरब डॉलर रही थी. 2015 में यह 475 अरब डॉलर थी।
ब्रिक्‍स देशों में भारत की स्थिति दूसरों से ठीक दिखती है। ब्राजील में बचत दर जीडीपी का 16 फीसदी है। मेक्सिको में यह 23 फीसदी और फिलीपींस में 14.2 फीसदी है। चीन में यह जीडीपी का 46 फीसदी है। विश्‍व बैंक के आंकड़ों से इसका पता चलता है।