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बैंकों ने अचानक Education लोन बांटना कर दिया है कम! जानें क्यों?

पिछले कुछ वर्षों में एजुकेशन लोन को लेकर बैंकों का रवैया बदलता हुआ नजर आ रहा है| साल-दर-साल बैंकों की ओर से बांटे जा रहे एजुकेशन लोन का आंकड़ा घटता जा रहा है

बैंकों के बढ़ते आर्थिक संकट का सबसे बुरा पहलु निकल कर बाहर आ रहा है| बैंकों ने बढ़ते बैड लोन को कंट्रोल करने के लिए लोन देने की शर्तों में नित नए बढ़ोत्तरी करते जा रही है और इसका खामियाजा सबसे पहले उस क्षेत्र पर पड़ा है जिसपर देश का भविष्य टिका है| ताज़ा आंकड़ों से ज्ञात हुआ है कि बैंकों ने एजुकेशन लोन बांटने की दर काफी धीमी कर दी है| आखिर ऐसा क्यों हो रहा है|

2019 में एजुकेशन लोन घटकर 66,902 करोड़ रूपए हुआ  

देश में मौजूदा दौर में एजुकेशन काफी महंगी हो गई है| अगर आप हायर एजुकेशन के लिए किसी अच्‍छे इंस्टिट्यूट में एडमिशन लेना चाहते हैं और पैसों की कमी आड़े आती है तो बैंक आपकी मदद करते हैं| हालांकि पिछले कुछ वर्षों में एजुकेशन लोन को लेकर बैंकों का रवैया बदलता हुआ नजर आ रहा है| इसका सबूत है कि बैंकों की ओर से बांटे गए एजुकेशन लोन का आंकड़ा नवंबर 2019 में 66,902 करोड़ रुपए रहा है, जो दो साल पहले सितंबर 2017 तक 71,975 करोड़ रुपए था|

एजुकेशन लोन पोर्टफोलिया 3.5% की दर से रहा है घट 

साल-दर-साल आधार पर देखें तो नवंबर, 2019 से पहले के 12 महीनों में बैंकों का एजुकेशन लोन पोर्टफोलिया 3.5 फीसदी की दर से घट रहा है| बैंकों की ओर से बांटे जा रहे एजुकेशन लोन के घटने का आंकड़ा बहुत ज्‍यादा तो नहीं है, लेकिन उनका नकारात्‍मक रुझान देश की अर्थव्‍यवस्‍था की धुंधली तस्‍वीर पेश कर रहा है|

ऐसा क्‍या हुआ कि बैंकों ने अचानक एजुकेशन लोन बांटना करीब-करीब बंद कर दिया? विदित हो कि बैंक किसी भी सेक्‍टर को लोन देना तभी बंद करते हैं जब या तो उस सेक्‍टर से कर्ज की मांग कम हो जाए मगर यहां यही एकमात्र कारण नहीं है|

इसके ये कारण भी हैं:

  1. बढ़ता NPA- इसका प्राथमिक कारण विभिन्न क्षेत्रों में बढ़ते NPA (Non-Performing Assets) की मात्रा है| इससे बैंक किसी भी लोन देने में सावधानी बरतने लगे हैं और सर्वज्ञात है कि एजुकेशन लोन तो पूर्णत रिस्क है जिसमें स्टूडेंट पढाई पूरी करने के बाद जॉब लगने पर भुगतान करते हैं|
  2. बढ़ते डिफॉल्‍टर- बैंक अमूमन स्‍टूडेंट्स को लोन के लिए मना नहीं करते हैं| साथ ही लोन देने के सभी नियमों में कर्ज राशि और स्‍थानीय राजनीतिक हस्‍तक्षेप से ढील दे दी जाती है| ऐसे में बैंकों को लोन की रिकवरी में भी मुश्किलें पेश आती हैं| बैंकों में एकराय है कि ज्‍यादातर कम नौ‍करियां पैदा करने वाले या कम वेतन देने वाले सेक्‍टर में काम करने वाले स्‍टूडेंट्स एजुकेशन लोन के भुगतान में डिफॉल्‍ट करते हैं|
  3. एजुकेशन लोन NPA- इंडस्‍ट्री डाटा के आकलन से पता चलता है कि मार्च 2018 तक बैंकों के कुल NPA में एजुकेशन सेक्‍टर की हिस्‍सेदारी 8.97 फीसदी है, जो मार्च 2016 तक 7.29 फीसदी था| मार्च, 2015 तक सरकारी बैंकों के NPA में एजुकेशन सेक्‍टर की हिस्‍सेदारी मात्र 5.70 फीसदी थी|
  4. बढती बेरोजगारी- इस समय देश में बेरोजगारी 45 साल के उच्‍च स्‍तर पर है| फिलहाल महंगी फीस देकर प्रोफेशनल कोर्स करने वाले छात्रों के लिए बाजार में नौकरियां ही नहीं हैं| इससे डिफॉल्‍ट की आशंका बढ़ गई है. ऐसे में बैंक कर्ज देने में ज्‍यादा सावधानी बरत रहे हैं|

उपरोक्त सभी कारणों की पड़ताल करने के बाद यह साफ़ पता चलता है कि सरकार को अर्थव्यस्था को ठीक करने के तमाम प्रयास करने चाहिए, अन्यथा इसका बोझ नए स्टूडेंट्स पर पड़ेगा| कहीं ऐसा न हो कि किसी APJ अब्दुल कलाम का एजुकेशन लोन पास न हो और देश एक प्रतिभा से वंचित रह जाए|