कोरोना वायरस की वैक्सीन तैयार होने में लगेगा 1 साल
इसका सबसे पहले जानवरों पर टेस्ट किया जाता है।
कोरोना वायरस के कारण पूरी दुनिया में हाहाकार मचा हुआ है। कोरोना वायरस के डर से पूरी दुनिया सहमी हुई है। सरकार ने कोरोना वायरस को रोकने के लिए सिनेमा हॉल, मॉल, स्कूल-कॉलेजे और दफ्तर बंद कर दिए है। कामकाज में काफी खलल पद रहा है। बाजारों में भीड़ कम हो गई है। लोग घर से बाहर निकलने में कतरा रहे हैं।
कोरोना वायरस के इलाज के लिए बियोटिक और सरकारी एजेंसियां रात-दिन कोरोना वायरस का वैक्सीन तैयार करने में जुटी हुई हैं। लेकिन अभी तक इस बात का कोई समाधान नहीं मिला है। बियोटिक कंपनियां अगर इस पर अभी सफलता हासिल कर भी लेती हैं तो इस वैक्सीन को बाजार में आते आते एक साल का समय लग जाएगा।
ये वैक्सीन बढ़ाती है रोग-प्रतिरोधक क्षमता को
कोरोना वायरस की वैक्सीन को बाजार में उतारने के लिए लम्बा समय लगने के पीछे बहुत से कारण हैं। कोई भी दावा बाजार में उतारने से पहले उसपे टेस्ट किया जाता है। टेस्ट के बाद भी समय निर्धारित होता है कब तक इसको बाजार में उतारा जाएगा। जो वैक्सीन तैयार होगी वो सिर्फ वो बिमारी का इलाज नहीं बल्कि रोगी के रोग-प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा देगी।
इम्यून सिस्टम कमजोर होने के कारण वायरस भारी पड़ जाता है। और वो इंसान के सेल पर काबू पा कर शरीर में प्रवेश कर लेता है। और इंसान को हार्म करने लगता है। ये वैक्सीन इस वायरस की पहचान कर के उससे छुटकारा दिलाने में कारगर होती है। आप का शरीर इसकी पहचान नहीं कर पाता है।
बहुत जांच-परख के बाद वैक्सीन को उतारा जाता है बाजार में
बियोटिक अगर इस वैक्सीन को बना भी लेती है तो भी क्लिनिकल टेस्ट में बहुत समय जाता है। क्यों की किसी भी नयी दवाई का टेस्ट जानवरों पर किया जाता है और इसमें टाइम लगता है। बहुत जांच परख के बाद इसकी अनुमति मिलती है बाजार में उतारने के लिए।
वेस्ट वर्जिनिया यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफ्फेसर डॉ इवान मार्टिनेज का कहना है कि क्लिनिकल टेस्ट का उदेश्य सुरक्षा पर फोकस होता है। नई वैक्सीन रोगियों को देने से पहले स्वस्थ इंसान को दी जाती है। इसका सबसे पहले जानवरों पर टेस्ट किया जाता है। जानवरों पर टेस्ट पास होने के बाद इसका टेस्ट इंसानों पर किया जाता है। टेस्ट में पूरी तरह संतुष्टी के बाद वैक्सीन को बाजार में उतारा जाता है।