अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में मांग घटने और मौजूदा सीज़न में उत्पादन ज़्यादा होने की संभावनाओं के चलते घरेलू बाज़ार में बासमती चावल का दाम पिछले साल के मुकाबले 20 फीसदी गिरा
अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में परिस्थियां प्रतिकूल होने से देश में बासमती चावल की खरीदारी और उसके दाम में कमी आई है। मांग घटने और मौजूदा सीज़न में उत्पादन ज़्यादा होने की संभावनाओं के चलते घरेलू बाज़ार में बासमती चावल का दाम पिछले साल के मुकाबले 20 फीसदी गिरा है। बासमती चावल के निर्यातकों का कहना है कि सऊदी अरब और ईरान सहित कई बड़े देशों में आयात को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है।
चालू वित्त वर्ष के अगस्त में बासमती चावल के वैश्विक निर्यात में सालाना आधार पर की गयी रिकॉर्ड में 10 फीसदी की गिरावट दर्ज़ की गयी। पहले पांच महीनों में 16.6 लाख टन बासमती चावल का निर्यात हुआ जो पिछले साल की इसी अवधि में 18.5 लाख टन रहा था।
इसके चलते बढ़िया बासमती चावल के सबसे बड़े निर्यातक भारत में दाम में खास उछाल आने की संभावना कम है।
इकोनॉमिक्स टाइम्स के अनुसार पंजाब राइस मिल्स एंड एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के डायरेक्टर अशोक सेठी ने बताया, वैश्विक निर्यात बाज़ार में भारतीय बासमती को लेकर माहौल अच्छा नहीं हैं। इसलिए बाज़ार में इसके खरीदार काफी कम हैं। उन्होंने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में परिस्थियां प्रतिकूल होने से देश में बासमती धान की खरीदारी और उसके दाम में कमी आई है। ईरान से कच्चे तेल की खरीदारी पर पाबंदी के चलते बासमती चावल के बड़े निर्यातक ईरान से भुगतान मिलने में देरी होने को लेकर चिंतित हैं। साथ ही ईरान ने अपने किसानों के हितों की रक्षा के लिए आमतौर पर जुलाई से दिसंबर तक चावल के आयात पर प्रतिबंध लगाया हुआ है।
बासमती निर्यातक इस बात को लेकर चिंतित हैं कि अभी जो बाज़ार की हालत है उसमें बड़े आयातक कम रेट के लिए काफी मोलभाव कर सकते हैं। सेठी ने बताया कि एक्सपोर्ट मार्जिन में कमी आने के आसार के चलते ट्रेडर्स बासमती धान की खरीदारी के लिए बैंकों से लोन लेने से बच रहे हैं।
अभी हरियाणा और पंजाब में 1121 किस्म के बासमती धान का दाम 2500-2800 रुपये प्रति क्विंटल चल रहा है। पिछले साल कम उत्पादन होने और ईरान से ज्यादा मांग आने से बासमती धान का दाम बढ़कर 3300-3800 रुपये प्रति क्विंटल हो गया था। अमृतसर के एक किसान कुलवंत सिंह का कहना है कि इस सीजन में बासमती धान की गुणवत्ता अच्छी होने के बावजूद किसानों को पिछले साल से कम कीमत मिल रही है।
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