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डेट म्यूचुअल फंड में निवेश करना है लाभदायी और आसान

इस म्यूचुअल फंड स्कीम में कोई पेपरवर्क नहीं होता है।

छोटी बचत योजनायें या फिक्स्ड डिपॉजिट्स की ब्याज दर अगर आपको मनोनुकूल मुनाफ़ा नहीं दे रहे तो डेट फंड्स अर्थात डेट म्यूचुअल फंड में निवेश आपके लिए एक बेहतर ऑप्शन हो सकता है। इसमें निवेश के कई सारे फ़ायदे हैं। साथ ही इसमें निवेश करना भी बहुत आसान है.

नो पेपरवर्क

इस म्यूचुअल फंड स्कीम में कोई पेपरवर्क नहीं होता है। इसमें म्यूचुअल फंड स्टेटमेंट की सॉफ्ट कॉपी हासिल की जा सकती है। अगर यह कभी खो भी जाये तो कोई फर्क नहीं पड़ता। आप रिडेम्प्शन स्लिप पर दस्तखत करें और फंड हाउस उसे में जमाकर अपना पैसा वापस ले लें। इसके मुकाबले बैंक फिक्स्ड डिपॉजिट रिसीट अगर खो जाए तो आपको काफी पेपरवर्क करना पड़ सकता है।

औरों से बेहतर है डेट म्यूचुअल फंड

किसी भी डेट फंड के पोर्टफोलियो में 8-10 अलग-अलग बॉन्ड्स होते हैं, जिनसे किसी एक पक्ष से जुड़े रिस्क का असर कम हो जाता है। डेट म्यूचुअल फंड्स बैंकों के कन्वर्टिबल डिबेंचर, कमर्शल पेपर, गवर्नमेंट सिक्यॉरिटीज या कॉर्पोरेट बॉन्ड्स में निवेश करते हैं।  इसलिए ही यह बॉन्ड, गवर्नमेंट सिक्यॉरिटी या नॉन-कन्वर्टिबल डिबेंचर जैसे किसी एक इंस्ट्रूमेंट के मुकाबले  बेहतर होता है।

डेट म्यूचुअल फंड्स के लाभ

अगर इसमें से पैसा निकालने की कभी ज़रूरत पड़ जाये तो डेट म्यूचुअल फंड को 1 रुपये की यूनिट्स में तोड़ा जा सकता है और आप जरूरी रकम निकालसकते हैं।  स्मॉल सेविंग प्रॉडक्ट या एफडी के मामले में आपको पूरा डिपॉजिट तोड़ना पड़ता है।दूसरी बात डेट म्यूचुअल फंड्स में टीडीएस नहीं लगता है। अगर इनमें निवेश तीन साल तक बनाए रखा जाए तो इंडेक्सेशन बेनिफिट मिल सकता है और आपकी टैक्स देनदारी घट सकती है।

ब्याज दरों पर प्रभाव

डेट म्यूचुअल फंड में जब ब्याज दरें बढ़ती हैं तो बॉन्ड प्राइसेज गिरती हैं। वहीँ डेट म्यूचुअल फंड की दरें घटने पर बॉन्ड प्राइसेज चढ़ती हैं। सभी डेट फंड्स के साथ ब्याज दर वाला जोखिम तो होता है, मगर असर अलग-अलग हो सकता है। किसी भी डेट सिक्यॉरिटी पर डिफॉल्ट का खतरा तब पैदा होता है, जब उसे जारी कर पैसे जुटाने वाली संस्था जरूरी भुगतान नहीं कर पाती है। डेट म्यूचुअल फंड के पास जिन कंपनियों के बॉन्ड हों, उनमें से कोई भी अगर रीपेमेंट के शेड्यूल के मुताबिक पेमेंट न कर पाए तो फंड की नेट असेट वैल्यू (NAV) को झटका लग सकता है।  इसलिए फंड मैनेजर यह सुनिश्चित करते हैं कि स्कीम इस हद तक लिक्विड रहे कि फंड वैल्यू या प्राइस पर बिना असर डाले स्कीम में निवेश या निकासी किया जा सके।