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बजट-2020 : रोजगार सृजन का रखना होगा ध्यान

GDP 5.5 % से नीचे रहने का जोखिम बना रहेगा

भारतीय अर्थव्यवस्था की सुस्ती के कारक निकट भविष्य में दूर होते नहीं दिख रहे|सरकार को बजट में इस प्रकार निवेश करना चाहिए जिससे कि रोजगार सृजन हो तथा लोगों की व्यय योग्य आय बढ़े।बजट-2020 के लिए प्रायः हर सेक्टर  ने उपयोगी परामर्श दिए है|रोजगार सृजन का उपरोक्त परामर्श दिया है|साख निर्धारक तथा बाजार सलाह एवं अध्ययन कंपनी इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च (इंड-रा) ने| इंड-रा ने आर्थिक सुस्ती को दूर करने के लिए रोजगार को आवश्यक बताया है|

GDP 5.5 % से नीचे रहने का जोखिम

इंड-रा द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार चालू वित्त वर्ष के लिए राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा अनुमानित 5 प्रतिशत की विकास दर के अगले वित्त वर्ष में मामूली सुधार के साथ 5.5 प्रतिशत पर पहुंचने की उम्मीद है।इस दौरान  विकास दर के 5.5  प्रतिशत से नीचे रहने का जोखिम बना रहेगा | इंड-रा के अनुसार अर्थव्यवस्था में सुस्ती के कई कारक हैं। इनमें बैंकों के ऋण उठाव में सुस्ती और गैरबैंकिंग वित्तीय कंपनियों के ऋण उठान में अचानक तेज गिरावट, आम लोगों की आमदनी और उनकी बचत में कमी आना तथा फंसी हुई पूंजी से जुड़े विवादों के जल्द निपटारे में समाधान और न्याय प्रणाली की विफलता प्रमुख हैं। ऐसे में बजट प्रस्तुत करना सरकार के लिए एक बड़ी चुनोती है|

राजकोषीय घाटे पर जताई चिंता:

कर संग्रह में कमी से बढ़ता राजकोषीय घाटा भारतीय अर्थव्यवस्था की सर्वप्रमुख चिंता बन चुका है| राजकोषीय घाटे पर आशंका व्यक्त हुए एजेंसी ने कहा कि, राजस्व तथा गैर-कर राजस्व में गिरावट से वित्तीय घाटा बढ़ सकता है। रिजर्व बैंक से प्राप्त अधिशेष राशि को जोड़ने के बावजूद चालू वित्त वर्ष में वित्तीय घाटा 3.6 प्रतिशत पर पहुंच सकता है। बजट में इसके 3.3 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया गया था।

बजट-2020 से है उम्मीद :

इंड-रा के अनुसार सरकार ने आर्थिक सुस्ती से निपटने के लिए पिछले कुछ समय में कई उपायों की घोषणा की है|उनके फायदे मध्यम अवधि में ही सामने आएंगे। आगामी 1 फरवरी को संसद में पेश होने वाले बजट-2020 से काफी उम्मीदें हैं। हालांकि वित्त वर्ष 2020-21 में कुछ सुधार की उम्मीद है, लेकिन ये सभी नकारात्मक कारक बने रहेंगे।इसके परिणामस्वरूप भारतीय अर्थव्यवस्था कम उपभोग तथा कम निवेश के दौर में उलझी रहेगी। इंड-रा का मानना है कि इस स्थिति से निपटने के लिए नीतिगत स्तर पर बड़े कदम उठाने की जरूरत है ताकि घरेलू मांग बढ़े और अर्थव्यवस्था ऊंची विकास दर के रास्ते पर दुबारा लौट सके।