जब कोई व्यक्ति कंपनी की अंदरूनी जानकारी के आधार पर ट्रेडिंग करता है यह इनसाइडर ट्रेडिंग की श्रेणी में आता है। यह ग़ैरकानूनी है।
ग़ैरकानूनी तरीके से शेयर खरीदकर या बेचकर लाभ कमाना इनसाइडर ट्रेडिंग कहलाता है। ऐसा अक्सर किसी कंपनी के मैनेजमेंट से जुड़ा हुआ कोई व्यक्ति कंपनी की अंदरूनी जानकारी के आधार पर करता है इसलिए ही यह इनसाइडर ट्रेडिंग की श्रेणी में आता है।
उदाहरणस्वरूप अगर कोई कंपनी दूसरी कंपनी में मर्जर होने वाला है या शेयर गिरवी रखकर पैसा जुटाने के बारे में सोच रहा हो और ऐसे में प्रमोटर या कम्पनी से जुड़े लोगों को लगता है कि इस से कंपनी को फायदा होगा और शेयर के दाम इस वजह से बढ़ जाएंगे तो वो डील के अनाउंस होने से पहले ही अपने करीबियों के नाम पर शेयर खरीदता है। डील के अनाउंस होते ही शेयर के दाम बढ़ते हैं और वो शेयर बेचकर भारी मुनाफा कमा लेता है। ये ट्रेडिंग ही इनसाइडर ट्रेडिंग है। प्रमोटर द्वारा शेयर खरीदना गलत नहीं है अगर वो शेयर की खरीद सेबी (भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड) के नियमों के अनुसार करें और स्टोक एक्सचेंजों को डिस्क्लोजर दें।
सेबी (Securities and Exchange Board of India) ने इनसाइडर ट्रेडिंग की पहचान करने के लिए मार्केट सर्विलान्स सिस्टम लागू की है। ये सिस्टम मार्केट में असामान्य मार्केट पैटर्न पर निगरानी रखती है। सेबी ने इस सिस्टम में लगातार सुधार भी किये है। कई कंपनियों को सेबी द्वारा दंडित भी किया गया है। सेबी ने कई कानून भी बनाये हैं।
ध्यान रहे कि जब शेयर बाज़ार में तेजी का माहौल होता है तो काफी सारी छोटी-छोटी कंपनियों के दामों में भारी उछाल देखने को मिलता है। यहां प्रमोटर और सटोरियों की सांठगांठ हो सकती है। उनके द्वारा अलग-अलग अकाउंट में शेयर जमा किए जाते हैं, चैनल वोल्युम क्रिएट किया जाता है और बड़ी बड़ी बातें फैलाई जाती है। ये सब सरेआम होता है फिर भी इनको पकड़ना बहुत मुश्किल होता है। उदाहरण के लिए उत्तर भारत की एक डेरी कंपनी (नाम बताना उचित नहीं) की गतिविधियों कि जांच होनी चाहिए। कंपनी के शेयर का दाम तो 150 रुपए से औंधे मुंह गिर कर 7 रुपए तक आ पहुंचा है। लेकिन कंपनी की बैलेंस शीट और अनाउंसमेंट की जांच होना बहुत ज़रूरी है। उम्मीद की जा रही है कि उक्त कंपनी में इनसाइडर ट्रेडिंग चालू है।
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